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________________ २० पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. सबसमाहिवत्तियागारेणं कहेवाय, इहां तीब्रशला दिक रोग नपने थके, आर्च रौनी सर्वथा निरा शे जे शरीरनी स्वस्थता ते सर्व समाधि कहोये. तत्प्रत्ययिक जे कारण ते सर्वसमाधिवर्तिताकार कहीये. ते समाधिने निमित्ते जे औषध पथ्या दिकनी प्रवृत्तिने विषे अपूर्ण प्रत्याख्याने जमतां पण पचरूखाण नंग थाय नहीं. ___ सातमु (संघाश्कऊ के) संघादिकनुं को कार्य नपने के कमेरानी आझा पाले, तेने (म हत्तर के) महत्तरागार कहीये. ते आवी रीते के जे पचरुखाण की, मे, तेनी अनुपालनाथकी पण जो निर्धारानी अपेक्षाये विचारीये तो महो टुं निर्जरा लान हेतु कार्य , अने अन्य पुरुषां तरे ते कार्य असाध्य , बीजा कोइ पुरुषथी थाय तेम नथी,एवं कोइ संघर्नु तथा आदि शब्द श्रकी चैत्य ग्लानादिकना कार्य प्रयोजन , तेहिज आगार ते महत्तरागार कहीये. तिहां अपूर्ण काले जमतां पचख्खाणनंग न थाय. आठमुं (गिहब के०) गृहस्पनी नजर पड़े,
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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