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________________ पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. ३५ तोपण पच्चरकाणनो नंग थाय नही परंतु शुरु व्यवहार , तेथी फरी निःशंक न थाय ते माटे यथायोग्य प्रायश्चित्त लेवं. ए वात सर्व आगारोने विषे जाणवी. माटे आहीं पीगिकारूपे लखी. बीजो (सहसागारो के०) सहसात्कार ते (सयमुह के०) पोतानी मेले भावी मुखमांदे (पवेसो के ) प्रवेश करे ते जाणवू. एटले प चरकाण की, जे तेनो नपयोग तो वीसलोनथी, पण कार्य करवाना प्रवर्तनयोग लक्षण सहसा कारें स्वन्नावेज पोताना मुखमां कांइ प्रवेश पर जाय. जेम दधि मथतां यकां गंटो नमीने मुख मा पमी जाय, अथवा अनादिकनो कण मुखमा पमी जाय, तथा चनविहार नपवास होय, अने वर्षाकालमा मेघनो गंटो मुखमां पमी जाय, तो पञ्चरुखाण नांगे नहीं. - त्रीजो (पचन्नकाल के०) प्रचन्नकाल ते का लनी प्रबनता जाणवी. जेम (मेहा के) मे घादि एटले मेघना वादले करीने ढंका गयेला सूर्यनी खबर न पमे, तथा आदिशब्दयकी दिग्
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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