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________________ पञ्चकाण नाष्य अर्थसहित.. ३३ सरखं जाणवू, तथा एकासगुं अने (उन्नत्त के०) हिनक्त एटले बीआसणानुं पच्चरकाम अने आ गार पण सरखा जाणवा, तथा विग ने ( नि विगइ के०) नीविर्नु पचरुखाण अने आगार जागवा. तथा (अंगु के० ) अंग ठसहियं, (मुहि के०) मुहिसहियं, (गंगी के०) गंठिसहियं, (सचित्तदवाइं के०) सचित्त व्या दिक, पचरूखाण एटले सचित्त च्यादिक एट ले सचित्त च्यादिकना पचरूखाण जे देसावगा सिक तेमज दिवसचरिमादिनां पञ्चरकाश ए सर्व (निग्गहियं के०) अन्निग्रह पञ्चरकाण कहेवा य,तेना पण माहोमांहे पाठ तथा आगार सरखा जाणवा. परंतु कालप्रमाणादिकें तथा स्थानके तो फेरफार होयज ॥ २३ ॥ हवे ए सर्व आगारोना अर्थ कहे जे. विस्सरण मणालोगो, सहसागारोसय मुहपवेसो ॥ पहनकाल मेहाई, दिसि वि वजासु दिसिमोहो ॥२४॥
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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