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________________ पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. १ ल पञ्चख्खाण. सातमुं (अन्नत्तठे के ) अन्नक्ता ये एटले उपवास, पच्चरूखाण. आग्मुं (चरिमे अके) दिवसचरिम अश्नवा नवचरिमादिरूप जागवं. नवमुं (अन्निग्गहे के०)अन्निग्रह पञ्च स्काण ते अमुक वस्तु तेवारेज खानं जेवारे अमुक करूं ? इत्यादिक अन्निग्रह करे ते. तथा दशमुं (विगई के) विगई निविगइनुं पञ्चरकाण जा णवं. ए दशे पञ्चरकाणोने कालनी मुख्यता मा टे अक्ष पचरकाण कहीयें ॥३॥ इहां शिष्य पूछे ले के पोरिसी प्रमुखने काल पञ्चरकाण कयुं ते खरं पण नोकारसीनुं कालमा न न कह्यं माटे नोकारसी जे , ते अन्निग्रह पचरकाण कहेवाय पण कालपच्चरकाण श्रइ शके नहीं? - त्यां गुरु नत्तर कहे . नवकारसहियं एमां सहित शब्द आव्यो माटे सहित शब्दे कालप्रमा ण जाणवं, अने अल्प आगार ले माटे अल्प काल जावो. तेवारे शिष्य पूछे ले के पोरिसी तो एक प्रहर
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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