SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. १७ महोटे स्वरे करी पमुत्तर घणा वाले, कहे के परे नाइ खाधो रे ना खाधो ! केम के मुकता नथी. इत्यादिक कग्नि वचन बोले, अथवा आ क्रोश गाढस्वरादिक गुरुने करावे. ते आशातना जाणवी, वली एकवीशमी गुर्वादिके बोलाव्यो श्रको (तबगए के० ) त्यांधीज एटले पोताने ठे काणे बेगे श्रकोज नत्तर आपे, परंतु गुरुनी स मी आवीने जबाप न आपे तो आशातना था य. बावीशमी वल। गुर्वादिकें बोलाव्यो थको क हे के (किं के) शुं ते ? (तुम के) तमें कहो. कोण कदेवरावे ? शुं कहो गे? इत्या दिक विनयहीन वचन बोले, ते आशातना जा गवी,तश्रावीशमीवली गुर्वा दिकें बोलाव्योषको कहे के तूंज का नथी करतो? एवी रीतें पोता ना पूज्यने एक वचनांत बोलावे अथवा कहे के तमे कोण थका मुऊने प्रेरणा करो गे? इत्या दिक वचन कहे, ते आशातना जाणवी. चोवी शमी गर्वादिक तथा रत्नाधिक शिष्यने कहे के तमें समर्थ हो, पर्यायें लघु गे, माटे वृनुं तथा
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy