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________________ १४४ गुरुवंदन जाप्य श्रर्थसहित. निस्कमणं के० ) एक बार अवग्रहथी बाहेर नि कले एटले पहेले वांदणे आज्ञा मागी निसी हि कतो पग पुंजतो थको एकवार श्रवग्रह मांदे प्रवेश करे ने पी ग्रावस्सियाए कहेतो पाबल पूंजतो एकवार पहेले वांदणे अवग्रहथी बाहेर निकले, ने बीजा वांदणामां प्रवेश करे पण फ री पावो बाहेर निकले नही माटे बे वार पेसवुं ने एकवार निकलवु मली त्रण आवश्यक थयां ते पूर्वोक्त बावीश साधें मेलवतां ( पणवीसा के० ) पच्चीश ( श्रावसय के० ) आवश्यक ते ( किश्कम्मे के० ) कृतिकर्म एटले वांदणांने विषे थाय ॥ १८ ॥ किइ कम्मंपि कुणंतो, न होइ कि इकम्म निकरा जागी ॥ पणवी सामन्नय रं, साहु ठाणं विराहंतो ॥१॥ दारं ॥ १० ॥ अर्थः- हवे ए ( पणवीसां के० ) पच्चीश श्र वश्यक जे बे, तेमां (अन्नयरं के० ) अनेरुं एक पण ( द्वा के) स्थानक प्रत्यें ( विराहंतों के०)
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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