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________________ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. १५१ हवे अवश्य साचववा माटे आवश्यक कहीयें, ते वांदणां देतां पच्चीश आवश्यक सच वाय, तेनुं दशमुंहार कहे . दोवणय महाजाय, आवत्ता बार चन सिरतिगुत्तं ॥ उपवेसिग निकमणं, पण वीसावसय किइकम्मे ॥ १७॥ __ अर्थः-( दोवणयं के ) बे अवनत वांदणाने विषे जाणवां एटले बे वार नपरितन शरीर नाग नमामवो तिहां एक तो जेवारें " इछामि खमा समगो वंदिलं जावणिकाए निसाहिआए" एम कहीने नमे तेबारें देनी अणुजाणह एटले आज्ञा मागतो शरीरनो नपरितन नाग नमामे त्यारे गुरु देण कहे. ए एक अवनत प्रयुं, एम वीजीवार वांदणां देतां बीजं अवनत थाय. ए बे अवनत रूप बे आवश्यक श्रयां. तथा (अहाजाय के) एक यथाजात एटले जे रूपें दीक्षानो जन्म श्रयो हतो अर्थात् रजोहर प, मुहपत्ति चोलपट्टमात्रपणे श्रमण थयो हतो
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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