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________________ १४ देववंदन नाष्य अर्थसहित. अर्थः-श्रीजिन प्रतिमा देखी बे हाथ जोड़ी निल्ला लगामी प्रणाम करीये हे प्रथम (अं जलिबंधो के) अंजलिबंध प्रणाम कहीये, तथा कटिदेशथी नपरखं अर्धं शरीर तेने लगारेक न मामी प्रणाम करीये, अथवा कादि स्थानके रह्यां थकां कांक शिर नमामीये, तशा शिर क रादिकें करी नूपिका पादादिक, फरल ते एक अंगथी मामीने चार अंग पर्यंत नालामबुं ते वी जो (अहोसन के०)अर्दावनत प्रणाम कहीयें, तथा (अ के) वली बे जानु, के कर अने पां चमुं ननमांग ते मस्तक, ए पांच अंग नाही खमासमण अापीयें, तेत्रीजु (पंचंगन के ) पं चांग प्रणाम जाणवो. ए (तिपणामा के०) त्रण प्रणाम जाणवा. (वा के) अथवा ( सबन के ) सर्वत्र प्र णाम करवासमये ( तिवारं के० ) त्रण वार (सि राश्नमणे के०) मस्तकादिक नमामवे करी एट से शिर, कर अंजली प्रमुखे करी जे त्रण वार नमन आवर्त करवं ते (पणामतियं के० ) प्रणा
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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