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________________ १३० गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. (कुणमाणे के) करता होय, अथवा (कान के) करवानी (कामे के०) कामना एटले वां बना करता होय (अ के) वली करवा जता होय एटले स्थानके ( कयाइ के) केवारे पण गुरुने (मा वंदिता के०) वांदवा नही. आहीं माशब्द निषेधवाचक २ ॥ १५ ॥ ए सातमुंहार थयुं. उ तर बोल तेत्रीश श्रया ॥३३॥ हवे चार स्थानके वांदणां देवां, तेनुं आग्मुं हार कहे . पसंते आसण अ, नवसंते नवति ए॥ अणुनवि तु मेहावी, किइकम्म पन ऊई ॥१६॥ दारं ॥ ७॥ ___ अर्थः-एक (पसंते के ) प्रशांतचित्त व्या देपरहित गुरु होय, बीजुं (आसणजे के) श्रा सनस्थ एटले पोताने आसने बेग होय, (अ के०) वली त्रीजुं (नवसंते के) नपशांतचित्त एटले क्रोधादिके रहित होय, चोथु (नवहिए के ) नप स्थित होय एटले बंदेश इत्यादिक कहेवाने संमुख
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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