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________________ १२० गुरुवंदन जाय अर्थसहित. बेस, तु ते त्वग्वर्तन एटले शयन इत्या दिक, दशविध चक्रवाल साधु समाचारी, तथा नुघ पद विभाग सामाचारो प्रमुख विधि संयुक्त न करे, अथवा नबी अधिकी करे अथवा कषाय दंक सहित करे, अथवा राजवेनी पेरे करे जय मानीने करे, तथा गुर्वादिकना वचन सांग ली मलो थरने वचन खंमन करे, आक्रोश करे, इत्यादिकलकले करी देश अवसन्नो जावो. अने सर्वथकी अवसन्नो तो चोमासा विना शेषकालें पाट, बाजोव, निष्कारण संथारे, सेवे, स्थापनापिंग जमे. संथारो पायरयो राखे, प्रानृ तिकादि दोष जमे. इत्यादिक लक्षणें सर्व अ वसन्नो जावो. त्रीजो जेनुं कुत्सित, निंदनीय मावुं शील ए टले प्रचार होय, तेने कुशील कहीयें. तेनात्रण भेद बे. ज्ञानकुशील, दर्शनकुशील अने चारित्र कुशील, तिहां ज्ञानकुशील ते अकाल, अविनय, अबहुमान, गुरुनिन्दवता. योग उपधान दीन सू त्र, अर्थ अने तडुनय होन, इत्यादिक आशातना
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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