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________________ १२२ गुरुवंदन नाय प्रर्थसहित. एम ने पूर्वे व्य चितिकर्म दतुं, पठी जावचि तिर्म नृत्पन्न थयुं. ए बीजुं नदाहरण जारावं. हवे त्रीजा कृतिकर्म नपर वीरा शालवी अने श्रीमनुं नदाहरण कहे बे. श्रीनेमिनाथ भगवा न् द्वारिकाये समोसवा तेवारे श्रीकृभे सर्व सा धुनने छादशावर्त वांदो वांद्या, एने जात्रकृतिकर्म कहीये, अने श्रीकृभने रुरुं मनववाने श्रर्थे वीरा शालवीये पण वांद्या एने य कृतिकर्म कहीये. एना संबंधनो विस्तार यावश्यकवृत्तिथी जाणवो. ए त्रीजुं उदाहरण जाणवुं. हवे चोथा पूजाकर्म नपर वे सेवकनो दृष्टांत कहे बे. जेम एक राजाना वे सेवक दत्ता ते गा मनी सीमा निमित्ते विवाद करता राजपंथे जातां दता, मार्गमां साधु देखीने प्रशस्त मन, वचन अने कायायें करी एके कह्युं के " साधौ दृष्टे ध्रुवा सिद्धिः " एटले साधु दिवे बते निश्वयें कार्यसिद्धि श्राय, एमां संशय नथी, एम कही एकाग्र चित्ते साधुने वांद्या. अने बीजे सेवके नलटी दांती रूपें व्यवहार मात्रै तेने श्रवनमन करयुं, पी
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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