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________________ २०४ देववंदन जाप्य अर्थसहित. घिनो निषेध करवो अने विधिनो प्रतिसेवन करवो, एवा आठ गुणा विशु प्रयुक्त ते सर्वोपाधि विशुद्ध संपूर्ण विधि युक्त कहीये ॥ २ ॥ सवोवादि विसुद्धं, एवं जो बंदए सया देवे ॥ देविंदविंद महित्र्यं, परमपयं पावर बहुसो ॥ ६३ ॥ अर्थः- एम (सद्दोवाहि विसु के० ) सर्वो पाधि विशुद्ध जेम होय ( एवं के० ) एम एटले सर्व श्री जिनधर्म संबंधिनी चिंता तेणे करी नि दोष प्रकारें शुद्ध श्रायें करी ( जो के‍ ) जे नव्य प्राणी ( देवे के० ) श्रीदेवाधिदेवने ( सया के० ) सदा सर्वदा (वंदए के० ) वांदे ते जव्य प्राणी जवजयरूप पद जिहां नथी एवो ( परम पर्य के० ) परमपद एटले मोक्षरूप पद ते प्रत्यें ( लहुसो के० ) शीघ्र उतावलो ( पावइ के० ) पामे. ते परम पद कहेवुं बे ? तो के (देविंद के० ) देवना इंड तेमना (विंद के० ) समूह एटले इं ोने समूहें जेने ( महियं के० ) प्रतिं एटले.
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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