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________________ आत्मानुशासन. भावार्थ:--जैसे तालवृक्ष सभी वृक्षोंमें ऊंचा वृक्ष है परंतु उससे भी टूटकर नीचे पडते हुए उसके फल बीचमें कितनी देरतक ठहरते हैं! बहुत ही शीघ्र वे भूमिपर आपडते हैं । इसी प्रकार गर्भावतारसे लेकर उत्पत्ति पर्यंतकी अवस्था हुई तालवृक्ष और मरण हुआ नीचेकी भूमि, एवं उत्पन्न होकर मरणप्राप्तिसे पहले तक बीचकी जो अवस्था है वह हुआ अंतराल । ऐसी अवस्थामें जीवका जन्म लेनेके अनन्तर अन्तरालमें रहना कितनी देरतक हो सकता है ? बहुत ही थोडी देरमें वह मरण-भूमितक पहुच जायगा । संभव भी यही है । जीवके जीनेका कुछ भी ठिकाना नहीं रहता है । चाहें जब उसका मरण हो सकता है। प्रथम तो किसीको यही बात मालूम नहीं रहती कि रा या किसीका भी आयुष्य कबतकका है ? किसीका आयुष्य यदि अधिक भी हुआ तो भी बीचमें अनेक कारणोंसे क्षीण हो जानेकी संभावना रहती है जिससे कि छोटी भी अवस्थामें मरण हो जाना संभव है। विरला ही कोई ऐसा जीव होता है कि जो पूर्ण आयुष्य भोगकर मरता हो, नहीं तो सभीका आयुष्य कुछ न कुछ क्षीण होता ही है । चिंता रोग आदि आधिव्याधियां सभी जीवोंको लगी रहती हैं जो कि आयुःक्षयके खास कारण हैं । देखते भी हैं कि बहुतसे जीव जन्म लेकर बहुत ही जल्दी जल्दी मर जाते हैं, बडी अवस्थातक बहुत ही थोडे मनुष्य जीते जागते रहते हैं । इसीलिये इस जीवनको अंतरालकी उपमा दी है । इस प्रकार जीवनको क्षणभंगुर समझकर थोडेसे सुखाभासके लोभसे असली आत्महितका साधन छोडना नहीं चाहिये, जिससे कि अविनश्वर स्वाधीन सुख प्राप्त हो सकता है, और जहांसे फिर मरना नहीं है। ___मनुष्यकी रक्षाका होना असंभव है । देखोःक्षितिजलधिभिः संख्यातीतैर्बहिः पवनैत्रिभिः, परिवृतमतः खेनाधस्तात् खलासुरनारकान् ।
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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