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________________ आत्मानुशासन. रहते हैं । ऐसे मनुष्योंको समझानेकेलिये ग्रन्थकर्ता कहते हैं कि भाई, तू ऐसा विचारकर डर मत । तू भी दुःखसे तो डरता है और सुखकी सदा अभिलाषा करता है इसलिये हम वही उपदेश सुनावेंगे कि जिसके स्वीकार करनेसे दुःखका नाश और सुखका प्रादुर्भाव हो । अब आचार्य कहते हैं कि यद्यपि हमारा उपदेश तुझे वर्तमानमें कुछ कटुक लगेगा, परंतु तो भी तू उससे डर मत । यद्यपि कदाचिदस्मिन् विपाकमधुरं तदात्वकटु किंचित् । त्वं तस्मान्मा भैषीर्यथातुरो भेषजादुग्रात् ॥३॥ __ अर्थः-परिपाक समयमें नीरोग बनानेवाली औषधि पीते समय भले ही कडुवी मालम हो, परन्तु रोगी मनुष्यको उससे डरना न चाहिये । इसी प्रकार मेरा उपदेश यद्यपि धारण करते समय कुछ कठोर मालूम होगा, तो भी फलकालमें उसका फल मधुर होगा, यह जानकर उससे तू डरना नहीं। भावार्थ:-जो बुद्धिमान् मनुष्य हैं वे रोग दूर करनेवाली कडुवी औषधिको पीनेसे डरते नहीं, क्योंकि वे जानते हैं कि वह औषधि पीनेपर कुछ समय पीछे सुखकर होगी । इसी प्रकार जिस धर्मके धारण करनेसे कुछ काल पीछे सुखकी प्राप्ति होसकती है, वह धर्म, सेवन करते समय भले ही दुःसह्य हो पर, उससे बुद्धिमानोंको डरना व चाहिये। ___यदि कोई मनुष्य कहै कि ऐसे उपदेशक तो और भी बहुतसे हैं, तुम व्यर्थ कष्ट क्यों उठाते हो? तो इसका उत्तरः-- . जना घनाश्च वाचालाः सुलभाः स्युट्टेथोत्थिताः । दुर्लभा मन्तरार्दास्ते जगदम्युज्जिहीर्षवः । ४ । अर्थः-जैसे व्यर्थ गर्जनेवाले, जलरहित और चारों तरफसे व्यर्थ ही इकट्ठे होआने वाले मेघ तो बहुतसे होते हैं, पर, जलसे भरे हुए, वरसकर जगको सुखी करनेवाले बहुत ही थोडे होते हैं। इसी प्रकार
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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