SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदी-भाव सहित ( भोगोंमें साक्षात् दुःख)। १३५ सबसे अधिक प्रिय होता है । वही उनकेलिये काम सेक्नका अंग है। पर उन्हें ये कुच वीचमें ऐसे आड आते हैं कि जैसे किसी शत्रु-राजा को जीतकर पकडनेके वीचमें उसका पर्वतपरका दुर्भेद्य किला । यदि वह किला पार न हो तो शत्रु-राजातक पहुचना अति कठिन हो जाता है । सिवा इसके, योनिस्थानके पासमें ही त्रिबलीरूप नदियां बह रही हैं । इनका पार होना भी कठिन है । ये दुष्कर्म करनेवालेके आड आती हैं । इसके भी सिवा जो आस-पास बहुतसे रोम उठे रहते हैं वे भी योनिस्थानतक पहुचने में ऐसे आड आते हैं कि जैसे किसी स्थानके वीच मार्गमें सघन ऊगे हुए वृक्षों के झुंड तहांतक पहुचनेमें किसीको आड आते हों । अब कहिये, वहांतक यदि कोई मनुष्य किसी तरह पहुच भी जाय तो भी क्या खेदखिन्न न होगा ? इस प्रकार देखनेसे इस कामकुचेष्टाके करनेमें अनेक खेद ही खेद जान पडते हैं । तो भी इस सव दुःखकी वरवाह न करके जो इस कुचेष्टामें प्रवृत्त होते हैं, कहना चाहिये कि वे कामकी तीव्र वेदनासे विह्वल हो रहे हैं। इसलिये उन्होंने इन दुःखोंका विचार नहीं किया है । जो बुद्धिमान हैं वे ऐसे दुःखोंके वीच कभी नहीं फसते हैं। वगृहं विषयिणां मदनायुधस्य, नाडीव्रणं विषमनिर्वृतिपर्वतस्य । प्रच्छन्नपादुकमनङ्गमहाहिरन्ध्र,माहुर्बुधा जघनरन्ध्रमदः सुदत्याः ॥ १३३ ॥ अर्थः-वीर्य एक निन्द्य व ग्लानि उत्पन्न करनेवाली चीज है। इसीलिये इसकी कदर कूडे कचडेकीसी व मलमूत्रकीसी समझना चाहिये। स्त्रियोंकी योनि, जिसे कि कामीजन पसंद करते हैं वह है क्या हैं ? मलमूत्र या कूडा कचडा डालनेकी जगह है । अथवा, कामकी तीव्र वेदना होनेपर मनुष्य संभोग करते हैं इसलिये लिंग मानो एक काम देवका शस्त्र है कि जिसे वह उद्वेगमें आता है तब फेंकता है । जब
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy