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________________ प्रस्तावना. __ सारे ग्रंथका भाव हमने हिंदीमें लिखा है परंतु २०० वें श्लोकका अर्थ संस्कृतमें भी दिया है। इसका कारण इतना ही है कि उस श्लोकमें सर्वनामवाचक शब्द कई आगये हैं जिससे कि अन्वय लगा. नेमें देरी होना संभव है। इसकेलिये यदि वहां टिप्पणी दी जाती तो कई नंबर लगाने पडते । इससे इकट्ठा संस्कृत भाषामें अन्वय व अर्थ ही कर देना ठीक समझा गया। इस तीसरी टीकाका विशेष खुलासाःसंस्कृत व पहिली हिंदी टीका सर्वोपयोगी न होनेसे हमने यह तीसरी हिंदी टीका तयार की है। इसमें वर्तमान हिंदी भाषा तो रक्खी ही गई है। किंतु साथमें यह भी समझना चाहिये कि हमने केवल अन्वयानुसारी अर्थको अच्छा न समझकर भावार्थकी मुख्यतासे अर्थ लिखा है । कहीं कहींपर अधिक वक्तव्यका भावार्थ,' लिखकर और खुलासा भी किया है। इसका भी चौथा परिस्कार हमें शीघ्र ही देखनेको मिले ऐसी हम आशा करते हैं। प्रार्थना:हमारे लिखे हुए भावार्थमें संभव है कि भूलें हुई हो। इसकेलिये हम वीतराग विद्वानों से क्षमा चाहते हैं । वे यदि सूचना करेंगे तो आगे सुधार करदिया जायगा । इसी प्रकार प्रेसकी तरफसे तथा हमारे दृष्टिदोषवश जो अक्षरमात्रादिकी भूलें तथा परिवर्तन आदि हुआ हो उसकेलिये भी हम क्षमा चाहते हैं । लेखक:न्यायवाचस्पतिप्रभृत्यनेकपदगौरवित श्री. गोपालदास गुरोश्चरणान्तेवासी वंशीधर, मध्यापक-जैन पाठशाला, सोलापूर
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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