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________________ हिंदी-भाव सहित ( मोक्षका अंतिम साधन)। ९५ क्रोधादि दश अंतरके परिग्रह, इन सबोंको छोडना वह त्याग है । सर्व विषयोंको दुःखदायक समझकर आत्मचिंतनमें लीन होना और उससे अपनेको सुखी मानना वह समाधि कहाती है। इन चारों साधनोंके संग्रह करनेका यत्न करनेसे जीव इन्हें पा सकता है। और इसका पालेना ही सुखका सच्चा मार्ग है। इस मार्गको पकडे रहनेसे अवश्य परमात्म-पद की प्राप्ति होगी। वह परमपद इसना उत्कृष्ट है कि आजतक यदि इंद्रादिकोंके सुख भी भोगे हों तो वे भी उसके सामने धूल हैं । इसीलिये उसका वर्णन संसारवर्ती जीव नहीं कर सकता और न उसका मनद्वारा चिंतन ही कर सकता है । जिसका आजतक जिसने अनुभव ही नहीं किया वह उसका यदि विचार करै तो क्या करे ? संसारका कोई सुख उसकी तुलना भी तो नहीं रखता जिससे कि अंदाजन वह समझा जासकै । इसीलिये किमपि अर्थात्, कोई एक परमपद है ऐसा कह कर ग्रन्थकर्ता भी थक गये । परंतु दया दम त्याग और समाधिके धारण करनेसे जब कि अंशतः सच्चा स्वाधीन अभेद्य सुख प्राप्त होता हुआ अनुभवगोचर होता है जो कि विषयासक्तिमें आजतक कभी प्राप्त नहीं हुआ तो अनुमानसे यह बात समझमें आजाती है कि इसी मार्गसे परम और पूर्ण उस सुखकी प्राप्ति होगी, अन्यथा नहीं। दया, दम, त्याग, समाधि ये सव चारित्रके भेद हैं जो कि मोक्ष प्राप्तिका अंतिम साधन है। चारित्रका यही माहात्म्य और भी दिखाते हैं: विज्ञाननिहतमोहं कुटीप्रवेशो विशुद्धकायामिव । त्यागः परिग्रहाणामवश्यमजरामरं कुरुते ॥ १०८॥ अर्थ:-जीवाजीवके स्वरूपको सत्य, निरनिराला दिखानेवाला जो ज्ञान उसे विज्ञान समझना चाहिये । उसके द्वारा जब मोहनीय कर्मका नाश हो जाता है तब सम्यग्दर्शनका लाभ होता है। क्योंकि, भेदज्ञानके होनेपर सम्यग्दर्शनके घातक दर्शनमोहनीयनामा कर्मका नाश होगा और फिर सम्यग्दर्शनका लाभ अवश्य ही होगा । इस
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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