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________________ ३८ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । कठोरताने लिया ऐसा भी सत्य बचन बोलै नहीं। कठोर बचन कहिये वाका प्रान पीड़ा जाय है अरु अपना भी प्रान पीड़ा जाय है ऐसा सत्य बचनका स्वरूप जानना । अरु अचौर्यव्रत स्वरूप कहिए है औरांकी चौरी सर्व प्रकार तजे और चोरीकी वस्तु मोल लेना ही । अर गैले पड़े पाइ होइ तौ वस्तु ताका ग्रहन करे नहीं अरु जो ले मारे नाहीं अरुं वस्त्र अदला बदली करे नाहीं काहीकी रकम चुरावै नाहीं, राजादिकका हासल चुरावै नहीं । तौल विषै घाट दै नहीं। बाढ़ लेना ही । और गुमास्तागिरी विषै वा घरका व्योपार विषै कि सौकी चोरी भी नहीं करे इत्यादि सर्व चोरी का त्याग है । भावार्थ ।। मारगकी माटी वा दरयावका जल आदिका तौ याकै बिना दिया ग्रहन है। ये माल राजादिकका है याका नहीं येती चोरी याकौ लागै है अरु विशेष चोरी नहीं लागे है तिहि वास्तै याकुं स्थुल पनै अचौर्य व्रतका धारक कह्या । आगै बृह्मचर्य व्रतको कहिए है। सो परस्त्रीका तो सर्व प्रकार त्याग करै । अर स्वस्त्री विषै आठै चौदश अठाई सोलह कारन दक्षलक्षन रत्नत्रय आदि जे धर्म पर्व ताकौ शील पालै अरु काम विकार विष घटती करें । अरु शीलकी नव वाड़ि ताकू पालै ताको व्यौरौ । काम उत्पादक भोजन करे नहीं, उदर भर भोजन करे नहीं, श्रृंगार करे नाहीं, पर स्त्रीकी सेज्या विषै ऊपर बसै नहीं अकेली बतलावै नाहीं। अकेली स्त्रीकी संगति करै नाहीं रागभाव करि स्त्रीके बचन सुनै नाही रागभाव करि स्त्रीका रूप लावण्य निरख करै नहीं। मनमथ कथा करै नहीं ऐसे ब्रह्मचर्य व्रत जानना। आगै परिग्रह परिमान व्रत कहिये हैं सो आपना पुण्यके
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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