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________________ सोलं ॥ गहिलत्तणंपि कालं, सहियाय विमंबणा विविहा ॥ ७ ॥ जई कलावईए, जोसणरन्नंमि रायचत्ताए ॥ जं सा सीलगुणेण, बिनंग पुणन्नवा जाया ॥ ए ॥ सीलवश्ए सोलं, सकइ सकोवि वन्निजं नेव ॥ रायनिजत्ता सचिवा, चउरोवि पवंचिया जीए ॥ १० ॥ सिरि वझमाण पहुणा, सुधम्मलाजुत्ति जो पहवि ॥ सा जयन जए सुखसा, सारयससिविमलसीलगुणा ॥११॥ हरिहरबंनपुरंदर-मयनंजणपंचबाणबलदप्पो॥लोलाइ जेण दलिउँ, स थूलनदो दिसर्व नदं ॥ १५ ॥ मणहरतासन्नजरे, पछिअंतोवि तरुणि नियरेणं ॥ सुरगिरिनिचलचित्तो, सो वयरमहारिसी जय ॥ १३ ॥ थुणियं तस्स न सका, सढुस्स सुदंसणस्स गुण निवहो॥ जो विसमसंकमेसुवि, पमिवि अखंमसीलधणो ॥ १४ ॥ सुंदरि सुनंद चिपणा, मणोरमा अंजणा मिगावश्य ॥ जिणसासणसुप. सिझा, महासळ सुहं दिंतु ॥ १५ ॥ अञ्चकारिअचरित्रं, सुणिऊणं को न धुणई किरसीसं ॥
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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