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________________ त्तिदाणा ॥ तिन्छपनावगरेहिं, संपत्तो संपराया ॥१३ ॥ दालं सझा सुके, सुके कुम्मासए महामुणिणो ॥ सिरि मूखदेव कुमरो, रजासिरिं पावि गुरुइं ॥ १४ ॥ अश्दाण मुहर कविश्रण, विरश्य सय संख कव विवरियं ॥ विकमनरिंद चरिश्र, अवि लोए परिप्फुर ॥ १५॥ तियलोथ बंधवेहि, त्तप्नव चरिमहिं जिणवरिंदोहिं॥ कय किच्चेहि वि दिन्नं । संवरियं महादाणं ॥१६॥ सिरिसेयंसकुमारो, निस्सेयस सामि कहं न हो। ॥ फासूअदाणपवाहो, पयासि जेण नरहंमि ॥ १७ ॥ कह सान पसंसिजर, चंदणबाला जिणंहृदाणेणं ॥ बम्मासिय तवत विजे, निव्वविङ जेहिं वीरजिणो ॥ १७॥ पढमाई पारणा, अकरिंसु कति तह करिस्संति ॥अरिहंता जगवंतो,जस्स घरे तेसिं धुव सिहि ॥ १७॥ जिणनवणबिंबपुत्थय-संघसरूवेसु सत्तखित्तेसु ॥ वविशंधणंपि जायर, सिवफलय महो अणंतगुणं ॥ २० ॥
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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