SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग पलिय वरुणस्सन्निदेसूणा ॥ वेसमणे दोपलिया, एसटिई लोगपालाणं ॥ १७ ॥ कप्पस्स अंतपयरे, निय कप्पर्मिसया विमाणा ॥ इंद. निवासातेसिं, चकदिसिंलोगपालाणं ॥१७॥ (सुरेसु विश्दारं सम्मत्तं, एएसु चेव लवणदारं नएण३) असुरा नाग सुवन्ना, विजू अग्गीह दोव उदहोय ॥ दिसि पवण थणिय दस विह, नवपवई तेसु पुछ इंदा ॥ १५ ॥ चमरे बलीय धरणे, नूयाणं देश वेणुदेवे य॥ तत्तो अवेणु दालो, हरिकंत हरिस्सहे चेव ॥ २० ॥ अग्गिसिह अग्गिमाणव, पुरण विसिके तहेव जलकते ॥ जलपह तह अमिअगई, मियवाहण दाहिणुत्तर ॥ १॥ वेलंबेथ पन्नंजण, घोस महाघोस एसि मन्नयरो॥जंबु दीवं बत्तं, मेरे दंमं पहुकाउं॥२॥ चउतीसा चउचत्ता, अहत्तीसा य चत्तपंचएहं ॥ पन्ना चत्ता कमसो, लरका नवणाण दाहिण ॥ २३ ॥ चउचउलकविहूणा, तावश्या चेव उत्तरदिसाए॥ सवे वि सत्तकोमो, बावत्तरि हुति
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy