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________________ ૨૮ पयं ॥ १०८ ॥ श्रोगाहु उसू सुच्चि, गुणवी सगुणो कलाउ होइ । विजसु पिहुत्ते च गुण - उसुगुलिए मूल मिह जीवा ॥ १८९ ॥ इसुवग्गि बगुपि जीवा - वग्गजुए मूल होइ धणुपिट्ठे । धणुगविसेससेसं, दलित्रं बाहानुगं होइ ॥ १०० ॥ अंतिमखंमस्सुसुणा, जीवं संगुणि चउहिं नईऊणं । लमि वग्गिए दस - गुणम्मि मूलं हवइ पयरो ॥ १०१ ॥ जीवावग्गा डुगे, मिलिए दलिए अ होइ जं मूलं । वेडाई तयं, सपित्तगुणं नवे पयरो ॥१९२॥ एयं च पयरगणि, संववहारेण दंसि तेण । किंचूणं होइ फलं, हिां पि हवे सुहमगणणा ॥ १०३ ॥ पयरो सोस्सेहगुणो, होइ घणो परिरयाइ सव्वं वा । करणगणणालसेहिं, जंतग लिहियाउ दट्ठवं ॥ १०४ ॥ ाथ लवणसमुद्र अधिकार द्वितीयः गोतिरं लवणोजय, जोखण पण नवइसहस जा तच। समनूतलायो सगसय - जलवुमी सहसमोगाहो ॥ १०५ ॥ तेरा सिएए मज्जिल - रासिया
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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