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________________ अपराजियत्ति, सिय अरूणपोयनी लाना॥ बीए देवीज्जुअला, अजयं कुस पास मगर करा ॥२॥ तश्व बहि सुरा तुंबरू, खदंगिकपालि जम मनमधारी ॥ पुवाइ दारपाला, तुंबरू देवोथ पमिहारो ॥२१॥ सामन्न समोसरणे, एस विही ए जश् महड्ढि सुरो ॥ सब मिणं एगोवि हु, सकु. ण नयणेय रसुरेसु ॥२२॥ पुव मजायंजबउ, जलेश सुरो महहिमघवाई। तब सरणं नियमा, सययं पुण पामि हेराई॥ २३॥ सुबिध समब अडिय, जण पविथ अब सुसम्बो॥ श्वं थुर्ड बहुजणं, तीबयरो कुणउ सुपयलं ॥ १४ ॥ ॥ श्री ग्रहशान्तिस्तोत्रम् ॥ जगद्गुरुं नमस्कृत्य, श्रुत्वा सद्गुरु नाषितम् ॥ ग्रहशान्ति प्रवदयामि, जव्यानां सुखहेतवे ॥१॥ जन्मलग्ने च राशौ च, यदापीमन्ति खेचराः ॥ तदा संपूजयेशीमान्, खेचरैः सहितान् जिनान् ॥२॥ पुष्पैर्गधै पदी पैः, फलनैवेद्यसंयुतैः ॥ वर्ण
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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