SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .२७ फलं ॥ १५ ॥ किं बहुणा नणिएणं, जं कस्सषि कहवि कबक्सुिहाई ॥ दीसंति जवणमये, तन्न तवो कारणं चेव ॥ २० ॥ ॥ अथ श्री नावकुलकम् लिख्यते ॥ कमठासुरेण रश्यं-मिनीसणे पलयतुलजलबोले ॥ नावेण केवललविं, विवाहि जयउ पासजिणो ॥ १॥ निचुन्नो तंबोलो, पासेण विणा न होइ जह रंगो॥ तह दाणसीलतवना-वणाउ, अहलाउ नावविणा ॥२॥ मणि मंत उसहीणं, जंतयतंताण देवयाणंपि ॥ नावेण विणा सिद्धी, न हु कस्स दोसई लोए ॥ ३ ॥ सुहनावणावसेणं, पसन्नचंदो मुहुत्तमित्तेण ॥ खविऊण कम्मगंहिं, संपत्तो केवलं नाणं ॥४॥ सुस्सूसंती पाए, गुरुणीणं गरहिऊण नियदोसे ॥ उप्पन्नदिवनाणा, मिगावई जयन सुहनावा ॥ ५॥जयवं श्लाइपुत्तो, गुरुए वंसंमि जो समारूढो ॥ दवूम मुणिवरिंदे, सुहनावा केवली जा ॥ ६॥ कविलोअबनण
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy