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________________ व्याख्यान ६: इस तरफ राजाने गांव में आकर देखा तो केवल घास के घर ही जलते हुए नजर आये, इस से उसने विचारा किअहो ! अभयने मुझे कपट कर छल लिया । उसने अवश्य दीक्षा ले ली होगी। ऐसा विचार कर वह मुठी बांध वापीस दौड़ते हुए समवसरण में आये किन्तु वहां पर तो अभयकुमार को व्रत ले कर बैठे देखा, इस लिये 'तूने मुझे छला" ऐसा कह कर श्रेणिक राजाने उसको वन्दना की, फिर क्षमा याचना कर घर गये । अभयमुनि प्रभु के पास रह कर, तपस्या कर, कालधर्म प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देवता बने। ___ इस प्रकार गुण के स्थानरूप अभयमंत्रीने परमार्थसंस्तव नाम की प्रथम श्रद्धा को सफल कीया इसी प्रकार हे भव्यजीवों ! तुम को भी यहि मुक्तिरूपी स्त्री को आलिंगन करने की अभिलाषा हो तो तुम भी उस प्रकार करो । इत्यब्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादवृत्तौ प्रथम स्तंमे पंचमं ब्याख्यानम् ॥ ५. .. .. व्याख्यान ६ उत्तम प्रकार समाजको माननेलि मुनियों की सेवा करनेरूप मुनिपर्युपास्ति नाम की दूसरी श्रद्धा
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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