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________________ प्रस्ताव ना प्रस्तुत प्रन्थ श्रीविजयलक्ष्मीसरि की अत्यन्त मनोहर एवं उपकारक कृति है। इस में संख्याबंध कथाओं के अतिरिक्त शास्त्राधार भी अधिक मात्रा में उपलब्ध है। मध्यम बुद्धिवाले वाचक के लिये ऐसे ग्रन्थ की परम उपयोगिता समझ परमपूज्य प्रातःस्मरणीय आचार्य महाराज श्रीविजयकल्याणसूरीश्वरजी महाराज और मुनिमहाराज श्रीकुशलविजयजी की प्रेरणा से इसके पांचो विभागों के हिन्दी भाषानुवादकी योजना की गई है। इस प्रथम विभाग में प्रथम चार स्तंभ के भाषान्तर का . समावेश है, जिस में ६१ व्याख्यान हैं। इस विभाग में मात्र समकित विषय का ही विवेचन है। प्रारंभ में मंगलाचरण कर उसके करने की आवश्यकता को सिद्ध करते हुए प्रथम व्याख्यान में जिनेश्वर के ३५ अतिशयों का रोचक वर्णन किया गया है जो पढ़ते ही बनता है। तत्पश्चात् तीन व्याख्यानो में समकित के भेद बतलाते हुए प्रत्येक व्याख्यान से समकित के ६७ भेदों की व्याख्या आरम्भ होती है जिनके वर्णन पर कुल ५३ व्याख्यान व ६१ कथायें हैं जिनकी विस्तृत सूचि नीचे दी गई है। अन्तिम चार व्याख्यान समकित के भेद आदि
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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