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________________ 3; ५४ - श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : के लिये योग्य वर देखा था वो ही यह जान पड़ता है इस लिये बहुत ही अच्छा हुआ । यह विचार कर श्रेष्ठीने अपनी दुकान बंद कर श्रेणिक को उसके साथ उसके घर पर ले गया । वहाँ गौरव के योग्य श्रेणिक की उसने भोजनादिक से अच्छी महमानदारी की। फिर अपने कुटुम्बीजनों को बुला कर श्रेष्ठीने बड़े भारी महोत्सव सहित विधिपूर्वक उसकी पुत्री सुनंदा का विवाह श्रेणिक के साथ कर दिया। श्रेणिक उसके साथ प्रीतिपूर्वक क्रीडा करने लगा। कुछ समय बाद सुनन्दा गर्भवती हुई । उस समय जिनपूजा करना, हाथी पर बैठना और अहिंसा का पटह (अमारी पड़ह) बजवाना आदि उसको उत्पन्न हुए दोहदों को श्रेणिकने पूर्ण किये। ___ इस ओर राजगृह नगरी में प्रसेनजित राजा श्रेणिक के चले जाने से अत्यन्त दुखी हो कर उसकी खोज करने लगा। किसी आये हुए सार्थ के मुख से उसने सुना किश्रेणिक बेनातट नगर में हैं । इस बीच प्रसेनजित राजा को आयुष्य का अन्त करनेवाली व्याधि उत्पन्न हुई ईससे अपनी मृत्यु समीप आई जानकर उसने श्रेणिक को शीघ्रतया बुलाने के लिये राजसेवकों को ऊँट पर बिठा कर बेनातट की ओर भेजे । उन्होंने श्रेणिक के पास पहुँच कर उसको राजा की अन्तस्थिति कही, जिसको सुनकर श्रेणिकने सुनंदा से कहा कि हे प्रिया ! मैं मेरा पिता के पास जाता
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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