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________________ : ४२ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : आई तब बोला कि “ चिरकाल जीवो "। इस बीच में अभयकुमार को छींक आई तब वह बोला कि " मरो अथवा न मरो " इतने में कालसूकरिक नामक चांडाल को छींक आई तब वह बोला कि " म मर और म जीव " । इस प्रकार कुष्ठी के बोलने पर और भगवान को मरने का कहना सुन कर अधिक क्रोध से भरे हुए श्रेणिकने विचार किया कि - अहो ! यह कुष्ठी कैसा दुष्ट है ? इस को अवश्य दंड देना चाहिये । ऐसे शोच कर राजाने अपने सेवकों को हुक्म दिया कि जैसे ही यह कुष्ठी समवसरण के बाहर निकले वैसे ही इस को पकड़ लेना । इस पर जब वह कुष्ठी बाहर निकला तब सेवक लोग उसको पकड़ने के लिये गये तो वह आकाश मार्ग में उड़ गया। तब सेवकोंने आ कर राजा से कहा कि वह तो कोई देवता था इस से आकाशमार्ग में चला गया । यह सुन कर राजाने प्रभु से पूछा कि - हे भगवन् ! वह कुष्ठी कौन था और उसने ऐसी चेष्टा क्यों की ? प्रभुने जवाब दिया कि हे राजा ! वह कुष्ठी मनुष्य नहीं था परन्तु वह तो दुर्दुरांक नामक देव था । उसने तो बावना चन्दन द्वारा मेरे चरणों की पूजा की है किन्तु देवी माया से तुम को कुष्ठ की भ्रांति हो गई थी । राजाने फिर पूछा कि हे स्वामी ! वह देवता कैसे हुआ ? तब तीर्थपतिने उत्तर दिया कि - कोशांबीपुरी में सेडुक नामक एक ब्राह्मण रहता था ।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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