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________________ श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : श्रमणसिहोंने अगीयार अंग को धारण कर सिद्धपद को प्राप्त किया । ___ इन चार स्तंभ में समग्र बुद्धि के निधानरूप समकित को अनेकों प्रकार से दृष्टान्तो सहित बतलाया गया है । यह समकित मोक्ष के सर्व शुभ हेतुओं में मुख्य है, अतः पाठकों कों (पढ़ने, पढ़ाने व सुननेवालों को) उस समकित की प्राप्ति के लिये सतत उद्योग करना चाहिये । इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभे एकषष्टितम व्याख्यानम् ॥ ६१ ॥ ॥ इति चतुर्थः स्तंभः ॥ 46454645454545454545454SYSL545454545 ॥ इति. प्रथमः खंडः ॥ USUS LEUEUEUEUEUEUEUEUEUEUEUEUSucurve
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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