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________________ व्याख्यान ५९ : : ५५३ : अपने सूत्रधार के कहने से तूने भी उस नवागन्तुक सूत्रधार को छ घड़ी तक कारागृह में रक्खा परन्तु फिर वह कार्य अघटित प्रतित होने से उसे मुक्त कर दिया । उस पाप की बिना आलोचना क्रिये ही तुम दोनों मर कर सौधर्म देवलोक में देवता हुए। वहां से चव कर इस भव में भी तुम राजा और रथकार हुए हो । कोकाशने जातिमद किया था इससे वह इस भव में दासीपुत्र हुआ और उस परदेशी सूत्रधार को छ घड़ी तक कारागृह में रक्खा था इससे तुम दोनों इस भव में छ मास तक कारागृह में रहने के अनुसार ही प्रतिबंध में रहे । __ इस प्रकार ज्ञानी के वचन सुन कर काकजंघ राजाने अपने पुत्र को राज्य सौंप कोकाश सहित दीक्षा ग्रहण की और अनुक्रम से केवलज्ञान प्राप्त कर वे दोनों मोक्ष सिधारे । जगतप्रसिद्ध काकजंघ राजा कोकाश की बुद्धि से धर्म में दृढ़ता रख, कारक समकित धारण कर, अतींद्रिय ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये । इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभे एकोनषष्टितम व्याख्यानम् ॥ ५९॥.
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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