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________________ व्याख्यान ५९ : : ५३७ : नामों के सदृश प्रसिद्ध नहीं होते । देखो माषतुष, कुरगडूक, सावधाचार्य, रावण आदि नाम जैसे प्रसिद्ध हुए है वैसे अच्छे नाम नहीं। एक बार कोकण देश में निर्धन लोगों का संहार (नाश) करने में महाराक्षस सदृश बड़ा दुष्काल पड़ा जिससे धनिक लोग भी निर्धन समान हो गये और राजा भी रंक सदृश हो गये । कहा है किमानं मुश्चति गौरवं परिहरत्यायाति दीनात्मताम् , लज्जामुत्सृजति श्रयत्यदयतां नीचत्वमालंबते । भार्याबन्धुसुतासुतेष्वपकृतीर्नानाविधाश्चेष्टते, किंकिंयन्न करोति निन्दितमपि प्राणी क्षुधापीडितः भावार्थ:-दुष्काल में क्षुधा से पीड़ा पाये हुए लोग मान का त्याग कर देते हैं, गौरव (उच्चपन) को छोड़ देते हैं, दीनता धारण कर लेते हैं, लज्जा का त्याग कर देते हैं, निर्दयता का आश्रय लेते हैं, नीचपन का अवलंबन करते हैं, भार्या, बंधु, पुत्र और पुत्री के विषय में अनेक प्रकार के अपकार करने की चेष्टा करते हैं अर्थात् उनके दुःख की परवाह नहीं करते । तथा क्षुधापीड़ित मनुष्य दूसरे भी कौन -कौन से निन्दित कार्य नहीं करते ? सर्व करते हैं। ऐसे भयंकर दुष्काल के समय में कोकाश अपने कुटुम्ब
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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