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________________ व्याख्यान ५८ : : ५२५ : अंतःपुर में रहे तो उनके दर्शन नहीं होने से वह वीरक सदैव वहां आ राजद्वार की पुष्पादिक से पूजा कर चला जाता, परन्तु भोजन नहीं करता, वस्त्र नहीं बदलता, हजामत नहीं बनवाता और नख भी नहीं कटाता था । ऐसा उसने चार महिने तक किया । वर्षाकाल के व्यतीत हो जाने पर जब कृष्ण अंतःपुर के बाहर आये तो वीरकने आ कर नमन किया | उसको देख कर राजाने पूछा कि हे वीरक! तू ऐसा कुश क्यों दिखाई देता है ? यह सुन कर प्रतीहार ने कहा कि - हे स्वामी ! आप के दर्शन अब तक नहीं होने से भोजन आदि नहीं किया, इससे यह इतना दुर्बल हो गया है । यह सुन कर कृष्ण उस पर तुष्टमान हुए और उन्होंने वीरक को जहां वे हो वहां आने की छूट दी । फिर वे नेमिनाथ को वंदना करने को गये, वहां भगवान के मुंह से धर्मोपदेश सुन कर कृष्णने कहा कि - हे प्रभु ! भागवती दीक्षा या अन्य व्रत ग्रहण करने में तो मैं समर्थ नहीं हूँ तिस पर भी मैं इतना नियम करता हूँ कि जो कोई दीक्षा लेने को तैयार होगा उसका मैं महोत्सव करूंगा । इस प्रकार अभिग्रह लेकर कृष्ण वासुदेव अपने घर को गये । एक बार विवाह के योग्य वय को पहुंची हुई उसकी कन्यायें कृष्ण को प्रणाम करने आई तो वासुदेवने पुत्रियों से पूछा कि - हे पुत्रियों ! तुम रानियें होना चाहती हो या
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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