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________________ : ५२० : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : भावार्थ:- सम्यक्त्व, ज्ञान और संयम को संपूर्णतया प्राप्त करना ही मोक्ष साधन का उपाय है । यह उपाय इस नर भव में ही साध्य है क्योंकि तत्र के ज्ञाता पुरुष स्वशक्तिद्वारा इसको यहां ही प्राप्त करते हैं । ये धर्मशीला मुनयः प्रधानास्ते दुःखहीना नियमे भवन्ति । संप्राप्य शीघ्रं परमार्थतत्त्वं, व्रजन्ति मोक्षं विदमेकमेव ॥ १ ॥ भावार्थ:- जो धर्मशील ( धर्म के प्रतिपालन करनेवाले) प्रधान मुनि होते हैं वे ही निश्चय दुःख रहित होते हैं, वे शीघ्रता ही परमार्थ तत्व को प्राप्त कर एक चिद्रूप मोक्ष को प्राप्त करते हैं । इत्यादि भगवान के मुंह से युक्त वचन सुन कर प्रसन्न हुए प्रभासने अपना संशय दूर होने से अपने तीनसो शिष्यों सहित भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की। उसने सोलह वर्ष के गृहस्थपर्याय का त्याग कर सर्वविरति अंगीकार की । फिर आठ वर्ष तक छद्मस्थ पर्याय पाल कर आवरण रहित अव्याबाध केवलज्ञान प्राप्त किया । केवली अवस्था में सोलह वर्ष विचरण कर अनेक भव्य जीवों को प्रतिबोध कर जिस सुख के लिये उद्योग किया था वह मोक्ष सुख प्राप्त किया । ( इसी प्रकार संक्षेप से सर्व गणधरों का वर्णन समझना )
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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