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________________ व्याख्यान ४० : : ३६९ : स्नान मात्र से क्यों कर दूर हो सकते है ? इस प्रकार माता के वचनों की सत्यता से आकर्षित होकर गोविन्दने माता के साथ गुरु के पास जा श्रावक धर्म अंगीकार किया और अन्त में शत्रुजय तीर्थ पर सिद्धिसुख को प्राप्त किया। इस प्रसंग पर एक और निम्नस्थ दृष्टान्त हैसुतीर्थ की यात्रा पर त्रिविक्रम की कथा श्रावस्ती नगरी में त्रिविक्रम नामक राजा था। वह एक बार अरण्य में गया तो वहां एक पक्षी को अपने गोसलें से विरल शब्द करते सुना उसे अपशुकन समझ राजाने उस पर बाण का प्रहार किया जिसके फलस्वरूप वह शीघ्र ही पृथ्वी पर आ गिरा और छटपटाने लगा जिसको देख कर राजा को बड़ा रहम आया अतः वह पश्चात्ताप करता हुआ वहां से आगे बढ़ा। थोड़ी दूर जाने पर उसने एक महामुनि को देखा तो उनको नमन कर उनके सामने बैठ गया । मुनिने जब उसको अहिंसा धर्म का उपदेश किया तो राजाने विचार किया कि-अहो ! मैने जो हिंसक कर्म किया है उसको किसीने नहीं देखा फिर भी इस मुनिने जान लिया है अतः उस पाप का नाश करने के लिये मुझे ऐसे ज्ञानी मुनि के पास दीक्षा ग्रहण कर लेना चाहिये । ऐसा विचार कर राज्य का तृणवत् त्याग कर राजाने उस मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। अनुक्रम से उग्र तपस्या करने पर
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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