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________________ : ३५२ श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : हुई । इस प्रकार रात दिन तेरी अंगुली को अपने मुंह में रख कर तेरे पिताने तेरे को आराम पहुंचाया। उस समय मैंने तेरे पिता को बहुतेरा समझाया परन्तु उसने मेरे कहने पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया । इस प्रकार उसका तेरे पर अपूर्व स्नेह था आदि वृत्तान्त सुन कर कुणिक राजा अत्यन्त पश्चात्ताप करने लगा । वह अपने पिता को स्वयं कैद कर राज्य सिंहासन पर बैठा था इसलिये उसको कैदखाने से मुक्त करने के लिये वह अपने हाथ में एक बड़ा दंड लेकर कैदखाने की ओर दौड़ा। उसको उस प्रकार यमराज की भांति आता हुआ देखकर कुपुत्र के हाथ से अपमृत्यु से मरने के स्थान में अपने आप ही मरजाना उचित समझ कर श्रेणिकने शीघ्र ही तालपुट विष का आस्वादन कर मृत्यु को प्राप्त किया । पिता को आत्मघातद्वारा मृत्यु को प्राप्त हुआ देख कर अपने दुराचरण की निन्दा करता हुआ और पिता के स्नेह का स्मरण करता हुआ कुणिक अत्यन्त विलाप करने लगा । रातदिन महाशोक कर अत्यन्त दुःख का अनुभव करते हुए कुणिक राजा को देख कर उसके मंत्रियोंने उसके शोक को कम करने के लिये राजगृह से राजधानी को हटा कर चंपानगरी नामक नई राजधानी बसाई। जहां रहने से कुणिक का शोक कुछ कम हुआ । कुणिकराजा बहुत बलवान था इसलिये उसने अनुक्रम' से दक्षिण भरतार्थ के सर्व राजाओं को पराजित कर अपने
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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