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________________ व्याख्यान ३६ : : ३४१ : युद्ध आरंभ हुआ जिस में चेटक राजा के सेनापति बैरांगेने सुलसा के एक ही पुत्र को मारा कि उसी समय अन्य बत्तीस पुत्र भी एक ही साथ धराशायी हो गये । श्रेणिकराजा शीघ्रतया अपने नगर में आ पहुंचा और चेलणा के साथ विवाह कर लिया । नागसारथी तथा सुलसा जब अपने बत्तीसों पुत्रों के मृत्यु का समाचार सुन अत्यन्त रुदन करने लगी तो अभयकुमार ने कहा कि - जैनधर्म के तत्त्व को जाननेवाले तथा अनित्यादिक भावना को माननेवाले तुम को अविवेकी मनुव्यों के सदृश शोकसागर में पड़ना अयुक्त है। कहा है कि " कुशकोटिगतोदकबिन्दुवत्, परिपक्वद्रुमपत्रवृन्दवत् । जलबुद्बुदवच्छरीरिणां, क्षणिकं देहमिदं च जीवितम् ॥ १ ॥ भावार्थ:-दर्भ के अग्रभाग पर स्थित जलबिन्दु के सदृश, वृक्ष के परिपक्व पत्र समूह के सदृश और जल के बुबुदे के सदृश प्राणियों का देह एवं जीवन क्षणभंगुर है । यह सुन कर नागसारथी तथा सुलसा शोकरहित हुए । एक बार चम्पानगरी में महावीर को नमन कर अंबड नामक परिव्राजक जिसने जैनधर्म को स्वीकार किया था,
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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