SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : ३२४ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : कर उसने उनको अपने नगर में रहने के लिये आग्रहपूर्वक अनुनय - प्रार्थना कर वहां ठहराया। उसके आग्रह से सूरिने जब तक कि - आमराजा स्वयं बुलाने न आवे तब तक वहां से विहार न कर वहीं रहने की प्रतिज्ञा कर वहीं रहे । इस ओर आमराजा को यह सूचना मिली कि गुरु महाराज द्वार पर एक श्लोक लिख कर वहां से विहार कर कहीं अन्यत्र चले गये हैं । यह सुन कर उसने उस श्लोक को पढ़ा और मन में अत्यन्त दुःखी हुआ । एक बार आम राजा एक बन में गया तो वहां उसने एक कृष्ण सर्प को देखा । उसने उस सर्प का मुख दृढ़ मुट्ठी से पकड़ उसको एक वस्त्र से ढक सभा में ला कर सर्व पंडितों से समस्या पूछी किशस्त्रं शास्त्रं कृषिर्विद्याऽन्यद्वा यो येन जीवति । शस्त्र, शास्त्र, कृषि (खेती), विद्या अथवा दूसरा क्या कि- जिसके द्वारा मनुष्य जीता है ( अर्थात् ईन सब से क्या करना ? ऐसा इस समस्या का प्रश्न है । ) इस समस्या की किसी भी पंडितने राजा के अभिप्राय ' के अनुसार पूर्ति नहीं की तो राजाने ढिढोरा पिटवाया कि - जो कोई इस समस्या की पूर्ति मेरे मन के अभिप्राय के अनुसार करेगा उसको एक लक्ष स्वर्णमोहर इनाम में दी जायगी । यह सुन कर किसी द्यूतकार ( जुआरिये ) ने सूरि
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy