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________________ व्याख्यान ३४: : ३०५ : उसका नगर में प्रवेश कराया । गुरुने निर्वाणकलिका, प्रश्नप्रकाश आदि शास्त्र बना कर राजा को सुनाये जिस से राजाने प्रसन्न हो जैनधर्म अंगीकार किया तथा सर्व ब्राह्मण गण भी अपने अपने गर्व को छोड़ कर श्रीगुरु के चरणकमलों में भ्रमररूप हो कर रहें । सूरि भी जैनशासन की प्रभावना कर श्रीशत्रुजयगिरि पर जा कर बत्तीस दिवस का अनशन कर स्वर्ग सिधारे । इस प्रकार श्रीपादलिप्तसूरि का अमृत समान कथा का श्रोत्ररूप पात्रद्वारा पान कर (सुन कर) शक्तिशाली पुरुषों को अंजनादि गुणोंद्वारा शासन की महिमा बढ़ानी चाहिये । यह दृष्टान्त दर्शनसप्ततिका ग्रन्थ में विस्तारपूर्वक वर्णित है। इत्युपदेशप्रासादे तृतीयस्तंभे त्रयस्त्रिंशत्तमं . व्याख्यानम् ॥ ३३ ॥ व्याख्यान ३४ वां आठवां कविप्रभावक विषयमें अत्यद्भुतकवित्वस्य, कृतौ शक्तिर्भवेद्यदि । सम्यक्त्वे स कविर्नाम, प्रोक्तोऽष्टमःप्रभावकः ॥ भावार्थ:-अति अद्भुत कविता करने की शक्तिवाले
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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