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________________ : २८४ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : क्रोध में भर कर उस मैना को पकड़ अग्नि में डाल दी। यह देख तोता मौन धारण कर बैठा रहा । _____एक बार वज्रा के यहां दो मुनि भिक्षार्थे गये उन में से वृद्ध मुनिने लघु मुनि से कहा कि-इस मुर्गी की मस्तक को उसकी कलंगी सहित जो कोई खायगा बह राजा होगा। ब्राह्मणपुत्र जो दिवार के सहारे खड़ा था उसने मुनि के शब्द सुनलिये इसलिये उसने वज्रा से कहा कि-इस मुर्गी का मस्तक इस की कलंगी सहित पका कर मुझे खिला । वज्राने पहेले तो इनकार किया किन्तु बाद में उसके अत्यन्त आग्रह से वैसा करना स्वीकार किया। वज्राने मुर्गे को मार कर जब पकाना आरम्भ किया उस समय ब्राह्मणपुत्र तो स्नान के लिये बाहर गया हुआ था। और वजा के पुत्रने पाठशाला से आकर खाने को मांगा । वज्रा अपने झार का कहना भूल जाने से उस मुर्गी का मस्तक अपने लड़के को खाने को दे दिया । लड़का उसको खा कर वापस पाठशाला को लोट गया। थोड़ी देर बाद ब्राह्मणपुत्र स्नान कर लौटा और खाने को बैठा। उस समय उसने बिना मस्तक के केवल मुर्गी के शरीर का मांस देख कर वज्रा से मस्तक के लिये पूछा इस पर उसने उत्तर दिया कि-मस्तक तो भूल से मैने मेरे पुत्र को खिला दिया है। इस पर ब्राह्मणपुत्रने क्रोध में भर कर कहा कि-यदि तु
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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