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________________ : २४६ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : मुनिने उत्तर दिया कि-'गुडघृते न'-गुड़ और घी (मिष्ट नहीं?)। ऐसा प्रत्युत्तर सुन कर उसकी धारणाशक्ति से तुष्टमान हुई देवीने कहा कि-वरदान मांग । इस पर उसने यह वरदान मांगा कि-नयचक्र पुस्तक देओं। अतः देवीने उसको वह पुस्तके देदी जिस से मल्लमुनि अधिक शोभायमान हुआ । कुछ समय पश्चात् गुरुमहाराज विहार के क्रम से वापस वहां पधारे और मल्ल को सूरिपद प्रदान किया। श्री मल्लसरिने चोवीस हजार श्लोक का एक पद्मचरित्र बनाया। इसके बाद मल्लसरि भृगुकच्छ में आये। वहां शिलादित्य राजा के समक्ष बौद्ध साधु बुद्धानन्द के साथ उनका वादविवाद हुआ। उसमें मल्लाचार्यने नयचक्र के अभिप्राय के अनुसार छ महिने तक अविच्छिन्न वाग्धाराद्वारा पूर्व पक्ष किया । पूर्व पक्ष को धारण करने में अशक्त बुद्धानन्द अपने घर भग गया और वादी के पूर्व पक्ष को ढूढ़ दृढ़ कर १ देवीने वह पुस्तक उसको नहीं दी लेकिन कहा किइस ग्रन्थ के प्रगट होने से द्वेषी देवता गण उपद्रव करेंगे परन्तु उसके एक ही श्लोक से तुम सम्पूर्ण शास्त्र का अर्थ जान जाओगें । ऐसा कह कर शासनदेवी अदृश्य हो गई और उसने दश हजार श्लोकों का नया नयचक्र बनाया, ऐसा प्रभावक चरित्र में कहा गया हैं। २ किसी ग्रन्थ में छ दिन कहे गये हैं ।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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