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________________ व्याख्यान २६ : : २३९ : राजा की आज्ञा लेकर नन्दिषेण कुमारने उसको " अप्पा व दमेअव्वो-आत्मा का ही दमन करना चाहिये" आदि वाक्यों द्वारा जागृत किया । उस कुमार को देख कर सेचनकने विचारा कि-यह कुमार मेरा किसी समय का सम्बन्धि जान पड़ता है। इस प्रकार तर्कवितर्क करते हुए उसको जातिस्मरण ज्ञान हो गया इसलिये वह तुरन्त ही शान्त हो नन्दिषेण के पास आकर खड़ा हो गया । उसने उसको आलानस्तंभ के पास ले जाकर बांध दिया। इस हालत को सुन कर श्रेणिक आदि को बड़ा विस्मय हुआ। कुछ समय पश्चात् श्री महावीरस्वामी वैभारगिरि पर समवसर्ये जिनको वन्दना करने के लिये राजा श्रेणिक, अभयकुमार, नन्दिषेण आदि गये । प्रभु के मुख से देशना सुन कर अन्त में राजाने प्रभु से पूछा कि-हे स्वामी ! सेचनक हाथी नन्दिषेण कुमार से किस प्रकार शान्त हो गया ? इस पर प्रभुने नन्दिषेण के सुपात्र दान तथा हाथी के जीव से लक्ष ब्राह्मणों को दिये हुए भोजन का सर्व वृत्तान्त कह सुनाया। राजाने फिर उसके भविष्य के विषय में पूछा तो भगवानने उत्तर दिया कि-हे राजा ! न्याय से प्राप्त किये द्रव्य का सुपात्र दान करने से नन्दिषेण कुमार अनेक दिव्य भोग भोगकर चारित्र ग्रहण कर स्वर्ग में जा अनुक्रम से मोक्ष प्राप्त करेगा और इस हाथी के जीवने पूर्व में पात्र अपात्र का बिना विचार किये दान करने से थोड़े भोग प्राप्त
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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