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________________ -: २३२ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : पकवान में नलिये, ईंट आदि नहीं खाउंगा, दूध में थोर का दूध नहीं पीउंगा, पूरा नारियल मुंह में नहीं डालुंगा, पराया धन लेकर वापस नहीं दूंगा, स्वयंभूरमण समुद्र के दूसरे किनारे नहीं जाउंगा, तथा चान्डाल की स्त्री के साथ विषयसेवन नहीं करूंगा आदि मेरे कई एक नियम हैं । यह सुन कर गुरुने कहा कि-अरे कमल ! हमारे साथ ऐसी हँसी करने से अनेक भव उपार्जन होते है । जिस प्रकार स्वर्णकार सोने को तोड़ कर कुंडल आदि भिन्न आकार के आभूषण बनाता है इसी प्रकार गुरु की आशातना भी जीव को तियंचपन, नारकीपन, अपकायपन, पृथ्वीकायपन आदि अनेक दुःखदायक स्थान प्रदान करती है, इसलिये यह समय हास्य का नहीं है सो कोई भी नियम ग्रहण कर । यह सुन कर कमलने कुछ लज्जित होकर कहा कि-हे पूज्य ! मुझे यह नियम कर दिये कि-मेरे पड़ोस में जो एक वृद्ध कुम्हार रहता है उसके माथे की टार देख कर मैं सदैव भोजन करुंगा, उसके बिना देखे भोजन कभी भी नहीं करूंगा। गुरुने उस नियम से भी उसको भावी लाभ होता जानकर उसको उसका नियम कराया। फिर उसको बराबर पालन करने के लिये उसको कह कर गुरुने विहार किया। कमल भी लोकलज्जा के भय से किये हुए नियम का पालन करने लगा। ५. . एक बार कमल राजद्वारे गया तो वहां कामवश अधिक
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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