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________________ व्याख्यान १८ : : १६३ : सम्यग्दृष्टि प्राणी को तीसरी कायशुद्धि हो जाना जानना चाहिये । इस प्रसंग पर निम्नस्थ वज्रकर्ण का दृष्टान्त है:वज्रकर्ण का दृष्टान्त --- अयोध्यानगर में इक्ष्वाकुवंशीय दशरथ राजा राज्य करता था । उसने एक बार प्रसन्न होकर उसकी रानी कैकयी को एक वरदान दिया था। वह उसने योग्य समय पर मांगने के लिये रख छोड़ा था । रामचन्द्र को राजगद्दी देने वक्त उसने वह वरदान मांग कर रामचन्द्र को बारह वर्ष वनवास दिलाया जिसके फलस्वरूप राम, लक्ष्मण और सीता वनमें गये । वे फिरते फिरते अनुक्रम से पंचवटी में कुछ समय तक ठहर कर आगे बढ़ने पर अवन्ती प्रदेश में आये । वहां वे क्या देखते हैं कि दुकाने सर्व जात की चिजों से भरपूर खुली पड़ी थी, घर धन और स्वर्ण आदि से परिपूर्ण होने पर भी खुले पड़े थे, क्षेत्रो में, खलाओ में धान्य के ढेर लगे हुए थे तथा अश्व, बैल आदि पशुगण बिना रक्षक के स्वेच्छा से इधर उधर फिर रहे थे ! परन्तु किसी भी स्थान पर कोई पुरुष दृष्टिगोचर नहीं होता था । यह देख कर रामने लक्ष्मण से पूछा कि हे वत्स ! ये सब जनशून्य क्यों कर प्रतित होता है ? इस पर लक्ष्मण एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ कर चारों ओर देखने लगा तो उसको एक पुरुष दिखाई पड़ा | उसको बुलाने पर वह लक्ष्मण के पास आया और उसको प्रणाम किया । लक्ष्मण राम के पास पहुंचा ।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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