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________________ व्याख्यान ८: पदों को प्राप्त कर उसने द्वादशांगी की रचना की । उसमें "उपज्जाए" अर्थात् जीव से उत्पन्न होनेवाला जीव, नर नारी से उत्पन्न होनेवाला गर्भ, जीव से उत्पन होनेवाला अजीव, देह से उत्पन्न होनेवाले नख आदि, अजीव से उत्पन्न होनेवाला अजीव, इंटादिक के चूर्ण के समान और अजीव से उत्पन्न होनेवाला जीव, पसीने से जुं आदि की उत्पत्ति के समान । इस प्रकार विगम-नाश के भी चार भाग समझना चाहिये । जीव से* जीव का नाश होता है, जीव से अजीव का नाश होता है, अजीव से जीव का नाश होता है और अजीव से अजीव का नाश होता है। ध्रुवन में नित्य, अछेद्य, अभेद्यादिक जीव का स्वरूप समझना चाहिये । गौतम के दीक्षा लेने की खबर सुन कर अग्निभूति आदि अन्य दक्ष पंडित भी अनुक्रम से भगवान के पास आये और उनके संशय दूर होने से उन सबने भी अपने अपने शिष्यों सहित दीक्षा ग्रहण की। हे भव्य प्राणियों ! ये गौतम गणधर के गुणों का मन्दिर जैसा और सर्व सुखों को देनेवाला चरित्र सुनो कि * १ जीव छकाय जीवों की उपमर्दना करनेवाला ___ २ जीव घटादि पदार्थों का नाश करनेवाला ३ खड्गादिक अथवा सोमलादिक से मरण पानेवाला ४ घड़े को पत्थर मारने से घड़ा फूट जानेवाला ।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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