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________________ व्याख्यान ७ : : ७३ : पुष्पचूला साध्वीने केवलीपन से पृथ्वी पर विहार कर सर्व कर्मों का क्षय कर अन्त में मोक्षपद प्राप्त किया। इस पुष्पचूला के पवित्र चरित्र को सुनकर जो भव्य जीव गुरुपरिचर्या करने को तत्पर रहते हैं वे परम सुखों के धाम मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इत्यदिनपरिमितोपदेशप्रासादग्रन्थस्य वृत्ती प्रथमस्थंभे षष्ठं व्याख्यानम् ॥ ६ ॥ व्याख्यान ७ ब्यापन्नदर्शनी का त्याग करनेरूप तीसरी श्रद्धाव्यापन्नं दर्शनं येषां, निहनवानामसद्ग्रहैः । तेषां संगो न कर्तव्यस्तच्छ्रद्धानं तृतीयकम् ॥१॥ भावार्थ:-कदाग्रहद्वारा जिनका सम्यग्दर्शन नाश हो गया है उन निवों का संग नहीं करना तीसरी श्रद्धा कहलाती है। असद्ग्रहसे अर्थात् अपनी खुद की कल्पनाद्वारा माने हुए मत पर कदाग्रह रखने से जिन का दर्शन अर्थात् सर्व नयविशिष्ट वस्तुओं का बोधरूप समकित नष्ट हो गया हैं ऐसे निह्नवों समग्र वस्तुओं में यथावस्थित प्रतिपत्ति (श्रद्धा) होने पर भी कोई एकाद अर्थ में अन्य मान्यतावाले होते
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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