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________________ अध्याय - ३ ] 134 [ स्वाध्यायदोहन जं च जईण जहुत्तरफलं सुसामाइयाइ पंचविहं । । सुपसिद्धं जिणसमए तं चारित्तं जए जयइ जं पडिवन्नं परिपालियं च सम्मं परूवियं दिन्नं अन्नेसिं च जिणेहिं वि तं चारित्तं जए जयई छक्खंडाणमखंडं रज्जसिरिं चइअ चक्कवट्टीहिं । जं सम्मं पडिवन्नं तं चारित्तं जए जयइ जं पडिवन्ना दमगाइणोऽवि जीवा हवंति तियलोए । सयलजणपूयणिज्जा तं चारित्तं जए जयइ ॥ ५ ॥ ॥ ६ ॥ जं पालंताण मुणीसराण पाए णमंति साणंदा | देविंददाणविंदा तं चारित्तं जए जयइ जं चाणंतगुणंपि हु वणिज्जइ सतरभेअदसभेअं समयंमि मुणिवरेहिं तं चारितं जए जयइ समिईओ गुत्तीओ खंतीपमुहाओ मित्तियाईओ | साहंति जस्स सिद्धिं तं चारितं जए जयइ [ ९ ] बाहिरमभितरयं बारसभेयं जहुत्तरगुणं जं । वणिज्जर जिणसमए तं तवपयमेस वंदामि ॥ ३ ॥ 118 11 ॥ ७ ॥ । ॥ ८ ॥ ॥ ९ ॥ ॥ १ ॥
SR No.022310
Book TitleSwadhyay Dohanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvijay Muni
PublisherVijaydansuri Granthmala
Publication Year1940
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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