SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकारणवत्सल उपकारी महापुरुषो, स्वाध्यायधर्मनी महत्ताने अंगे आ रीतिये स्पष्ट प्रतिपादन करे छे, ते परमज्ञानी पुरुषोना आप्रतिपादननी वास्तविकताने स्वीकारनार आराधक आत्माओ स्वाध्यायनी महत्ताने अवश्य समजी शके तेम छे. स्वाध्यायधर्मना प्रकारो वाचना, प्रच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा, अने धर्मकथा ए मूजब, स्वाध्यायधर्मनी आराधनाना पांच मार्गो छे. आ पांचेय मार्गो, सामान्यरीतिये स्वाध्यायधर्मनी अखंडित साधनाने सारु परम आवश्यक छे. विधिपूर्वक आ मार्गोनी साधना, स्वाध्यायधर्मनी अणीशुद्ध आराधनानी साहायक छे. एकन्दरे वाचना आदि, स्वाध्यायधर्मना भेदो, तपधर्मनी आराधनाना अंगसमा छे. एटलाज कारणे स्वाध्यायधर्मनी आराधनीय रीतिओरूप वाचना विगेरे पांचेय गणी शकाय तेम छे. ___ ज्यारे बीजी रीतिये स्वाध्यायधर्मना स्वरूपने स्पष्ट करता परस्पर विभक्तएवा स्वाध्यायना मूलगत त्रण भेदो छे, प्रार्थाना, स्तवना, अने तत्त्वचिन्तन, ए त्रणेय प्रकारो स्वाध्यायधर्मना परमअंगो छे.
SR No.022310
Book TitleSwadhyay Dohanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvijay Muni
PublisherVijaydansuri Granthmala
Publication Year1940
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy