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________________ विषय सम्बन्धी ज्ञान को ग्रहण करने में समर्थ हैं तथा जब तक आयुष्य रहा हुआ है, तब तक सुज्ञजनों को आत्महित में उद्यम कर लेना चाहिये, फिर सरोवर के टूट जाने के बाद दीवार बाँधने से क्या फायदा है ? ॥ १६१ ।। विवेचन आत्म-हित के लिए प्रमाद छोड़ें __सद्धर्म-साधना की सामग्री मिल जाने के बाद भी शारीरिक रोग, जरावस्था, इन्द्रियों की क्षोणता तथा मृत्यु आदि व्यक्ति को साधना से भ्रष्ट कर देते हैं। अतः पूज्य उपाध्यायजी म. मैत्री-सभर हृदय से प्रेम भरी सलाह देते हुए फरमाते हैं कि हे भव्य आत्मन् ! जब तक तेरा देह स्वस्थ है, तब तक तू धर्म का आचरण कर ले। क्योंकि नीरोग अवस्था में ही कायिक धर्म का प्राचरण सम्भव है, जब तेरी काया किसी रोग से ग्रस्त हो जाएगी, उसके बाद तू धर्म का प्राचरण कैसे कर सकेगा ? तप, त्याग और विरतिधर्म की साधना के लिए स्वस्थ देह की आवश्यकता रहती है, अतः यदि तू स्वस्थ है तो प्रमाद का त्याग कर और सद्धर्म की साधना के लिए प्रयत्नशील बन, क्योंकि किस समय यह देह रोगग्रस्त हो जाएगा, कुछ कह नहीं सकते हैं। अतः देह की स्वस्थता का गुमान न कर और उस देह के द्वारा जिनाज्ञा के पालन में प्रयत्नशील बन। इसी में तेरा सच्चा हित रहा हुअा है। हे युवा ! तू प्रमाद का त्याग कर, सद्धर्म के आचरण में प्रयत्नशील बन जा। क्योंकि यह यौवन तो 'चार दिन की चांदनी' को तरह अस्थायी है। शान्त सुधारस विवेचन-८५
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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