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________________ 'कौड़ी को तो बहुत सम्हाला' पर लाल रतन क्यों छोड़ दिया ? एक रससिक्त धारा में बहने का आमन्त्रण । आप बहते ही जामो, बहते ही जागो और अगले क्षण आप होंगे आनन्द के निरवधि समुद्र में। सचमुच शान्त सुधारस की एक-एक पंक्ति में आनन्द से भिगो देने की शक्ति है। 'समुद समाना बूद में'। तो आमन्त्रण दिया हुआ है आपको, अब भीतर की महफिल में शामिल होना है। बाहर तो क्या है ? जो है सो भीतर ही है। ज्ञानीपुरुष कभी-कभी करुणा से उद्वेलित होकर कह उठते हैं : इन कंकड़ों और कूड़े को एकत्र कर क्या करोगे? यह तुमने क्या इकट्ठा कर लिया है ? क्या है तुम्हारे पास ? ___ महाकवि खालिस ने कहा है : 'कौड़ी को तो बहुत सम्हाला, लाल रतन क्यों छोड़ दिया ? नाम जपन क्यों छोड़ दिया ?' कौड़ी को तुमने सम्हाल कर, संजोकर जतन से रखा है और हीरे को छोड़ दिया ? परमात्मा को ही भूल गये। . 'शान्त सुधारस' की पंक्तियां गुनगुनाये जाने पर/दोहराये जाने पर यह अभिवचन कि हीरा तुम्हारे पास ही है, का ज्ञान हुए बिना नहीं रहेगा। ___भावय रे ! वपुरिक्मतिमलिनम् ...' जैसी पंक्तियां तुम्हें शरीर से बाहर झांकने पर विवश कर देंगी। शरीर में ही पिरोई हुई चेतना (?) अब (Beyond the body) बीयाण्ड द बॉडी देखेगी। शरीर के उस पार, मन के उस पार....वही तो दर्शनीय है। 'उस' को जिसने देख लिया; संसार में कोई भी पदार्थ उसके लिए दर्शनीय नहीं ( ६ )
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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