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________________ शाश्वत सुख की प्राप्ति का अमोघ साधन है। आज तक अनन्त आत्माएँ जिनधर्म की शरण स्वीकार कर मोक्षपद को प्राप्त हुई हैं और भविष्य में भी जिनधर्म को स्वीकार कर अनन्त आत्माएँ मोक्ष में जाने वाली हैं। (5) भवभयबाधन-प्रात्मा के लिए यह संसार ही महा अपायभूत है। जहाँ अजन्मा आत्मा को जन्म लेना पड़ता है, अमृत आत्मा को मरना पड़ता है, अजर आत्मा को जरा का शिकार बनना पड़ता है और नीरोग आत्मा को रोग से पीड़ित बनना पड़ता है। जिनेश्वर का धर्म आत्मा को समस्त भयों से, दुःखों से मुक्त । कर शाश्वत-पद प्रदान करता है। (6) जगदाधार-जिनेश्वर का धर्म सर्व प्राणियों के लिए आधार-स्तम्भ है। आज तक उसने अनन्त आत्माओं को आश्रयसंरक्षण दिया है। वास्तव में, भव के दुःख से मुक्त बनने के लिए जिनेश्वर का धर्म ही आधार-स्तम्भ है। __(7) गम्भीर-जिनेश्वर का धर्म समुद्र की भाँति अत्यन्त गम्भीर है। उपर्युक्त विशेषणों से युक्त जिनधर्म मेरा रक्षण करे। 8 निरालम्बमियमसदाधारा , तिष्ठति वसुधा येन । तं विश्वस्थितिमूलस्तम्भं , त्वां सेवे विनयेन , पालय० ॥ १३४ ॥ शान्त सुधारस विवेचन-२२
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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